कोल ब्लॉक नीलामी के खिलाफ झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने शनिवार को प्रोजेक्ट भवन में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि यह केंद्र सरकार का बहुत बड़ा नीतिगत निर्णय है। इसमें राज्य सरकार को भी विश्वास में लेने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकार समन्वय स्थापित कर आगे बढ़ सकते हैं। एक स्वस्थ परंपरा कायम हो सकती है।
सोरेन ने कहा कि यह नहीं दिखा कि केंद्र की नीति में कोई पारदर्शिता है। राज्य और यहां के लोगों को कैसे फायदा हो, जरूरत तो यह थी कि यहां इतने दिनों से खनन हो रहा है तो एक सर्वे होता, जिसमें यह स्पष्ट होता कि यहां के लोगों कितना लाभ होगा। पहले नहीं मिला तो क्यों नहीं मिला। लेकिन केंद्र ने हड़बड़ी दिखाई। लॉकडाउन में विदेश निवेश कैसे होगा, यह भी सवाल है। इसलिए झारखंड ने कोल ब्लॉक नीलामी को लेकर कानूनी लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया है।
हेमंत सोरेन ने सवाल खड़ा किया कि क्या यह जरूरी नहीं था कि पहले से बंद पड़े उद्योग-धंधों की जरूरतों का आकलन कर लिया जाता। राज्य में हमेशा खनन एक ज्वलंत विषय रहा है। इसको लेकर अब नयी प्रक्रिया अपनायी जा रही है। उसमें फिर पुरानी व्यवस्था में जाने की संभावना है जिससे हम बाहर आए थे।
हेमंत ने कहा कि खनन की पुरानी व्यवस्था से बाहर निकलने के बाद भी यहां के रैयतों (किसान) को उनका अधिकार नहीं मिला है। विस्थापन का दंश जारी है। बड़े पैमाने पर समस्याएं और जमीन विवाद उलझा हुआ है। इसको लेकर मजदूर और इससे जुड़े संगठन सड़क पर हैं। इसीलिए हम लोगों ने केंद्र सरकार से इस मामले में जल्दबाजी नहीं करने का आग्रह किया था। लेकिन, केंद्र की ओर से कोई आश्वासन नहीं मिला।
व्यवसायियों का समूह केंद्र को जकड़ रखा है :
हेमंत ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की हड़बड़ी के पीछे यह कारण है कि उसे व्यवसायियों के एक समूह ने जकड़ रखा है। उन्होंने कहा कि महामारी के बीच इस तरह का काम करना, वही बात है- जैसे गांव में आग लगी हो और कुछ लोग सामान चुरा कर भाग निकले।
No comments:
Post a Comment